Tuesday, July 24, 2007
"सुबह सवेरे"
सुबह सवेरे
सुबह सवेरे जहन में मेरे
उठा एक सवाल,
क्षण भर में जिसको मैनें
मन से दिया निकाल,
निरंतर फिर भी मेरे
मन को वो कुरेदता है।
कि शेखर तू
दूसरों के प्रति क्या सोचता है?
विवाद के स्थान पर,
इस भोतिक सामान पर,
कभी न अभिमान कर।
अपनी गलती ले मान,
यही है महान,
आत्माओं की पहचहान।।
धर्म-जाति, रंग, लिंग की
सामाज में, जो ये दीवारें खडी हैं,
क्या, क्या ये सारी मानवता से बडी हैं?
न जाने इसका क्या निष्कर्ष होगा,
पर किसी का न इससे कोई उत्कर्ष होगा।
तुम ही हो,
तुम ही हो जो इन दीवारों को गिराकर,
सम्पूर्ण भेदभाव भुलाकर,
समाज का कल्याण करोगे।
दुनिया का नव निर्माण करोगे||
दुनिया का नव निर्माण करोगे||
........***........
सुबह सवेरे जहन में मेरे
उठा एक सवाल,
क्षण भर में जिसको मैनें
मन से दिया निकाल,
निरंतर फिर भी मेरे
मन को वो कुरेदता है।
कि शेखर तू
दूसरों के प्रति क्या सोचता है?
विवाद के स्थान पर,
इस भोतिक सामान पर,
कभी न अभिमान कर।
अपनी गलती ले मान,
यही है महान,
आत्माओं की पहचहान।।
धर्म-जाति, रंग, लिंग की
सामाज में, जो ये दीवारें खडी हैं,
क्या, क्या ये सारी मानवता से बडी हैं?
न जाने इसका क्या निष्कर्ष होगा,
पर किसी का न इससे कोई उत्कर्ष होगा।
तुम ही हो,
तुम ही हो जो इन दीवारों को गिराकर,
सम्पूर्ण भेदभाव भुलाकर,
समाज का कल्याण करोगे।
दुनिया का नव निर्माण करोगे||
दुनिया का नव निर्माण करोगे||
........***........
दावानल
जीवन की अंधी दौङ के चलते,
एक अरसा हो गया मां के आंचल में सोये हुये।
रिश्तों में जंग लग गया है कुछ ऐसे,
कि मौसम बीत गये अपनों के संग मुस्कुराये हुये।
बस जीने के लिये जी रहे हैं अब तो,
वर्षों गुजर गये खुद से नजरें मिलाये हुये।
वक्त ठहर गया सा लगता है उनके बिन,
हम बेगाने न हो जायें उन्हें मन में बसाये हुये।
मुदत हो गयी कुछ गुनगुनाये हुये,
कि इक जमाना बीत गया, उन्हें याद आये हुये।
कि इक जमाना बीत गया, उन्हें याद आये हुये।।...
एक अरसा हो गया मां के आंचल में सोये हुये।
रिश्तों में जंग लग गया है कुछ ऐसे,
कि मौसम बीत गये अपनों के संग मुस्कुराये हुये।
बस जीने के लिये जी रहे हैं अब तो,
वर्षों गुजर गये खुद से नजरें मिलाये हुये।
वक्त ठहर गया सा लगता है उनके बिन,
हम बेगाने न हो जायें उन्हें मन में बसाये हुये।
मुदत हो गयी कुछ गुनगुनाये हुये,
कि इक जमाना बीत गया, उन्हें याद आये हुये।
कि इक जमाना बीत गया, उन्हें याद आये हुये।।...
अकेला इक ख्वाब ..I Like it very Much (By Faiz)
इस अजनबी सी दुनिया में, अकेला इक ख्वाब हूँ.
सवालों से खफ़ा, चोट सा जवाब हूँ.
जो ना समझ सके, उनके लिये "कौन".
जो समझ चुके, उनके लिये किताब हूँ.
दुनिया कि नज़रों में, जाने क्युं चुभा सा.
सबसे नशीला और बदनाम शराब हूँ.
सर उठा के देखो, वो देख रहा है तुमको.
जिसको न देखा उसने, वो चमकता आफ़ताब हूँ.
आँखों से देखोगे, तो खुश मुझे पाओगे.
दिल से पूछोगे, तो दर्द का सैलाब हूँ.
लोग कहते हैं हुई थी बारिश उस रोज़,
उन्हें क्या पता ग़म-ए-हिज़्र में रोया था कोई।
यूँ साए देख कर खुश होते हैं सब ग़ाफ़िल,
उन्हें क्या पता कल धूप में सोया था कोई।
कतरा-कतरा कर के मुस्कुराते हैं सभी,
उन्हें क्या पता चश़्म-ए-तर का रोया था कोई।
मंज़िल-ए-आखिर को चलते हैं अब राहिल,
उन्हें क्या पता इन राहों पर खोया था कोई।
सवालों से खफ़ा, चोट सा जवाब हूँ.
जो ना समझ सके, उनके लिये "कौन".
जो समझ चुके, उनके लिये किताब हूँ.
दुनिया कि नज़रों में, जाने क्युं चुभा सा.
सबसे नशीला और बदनाम शराब हूँ.
सर उठा के देखो, वो देख रहा है तुमको.
जिसको न देखा उसने, वो चमकता आफ़ताब हूँ.
आँखों से देखोगे, तो खुश मुझे पाओगे.
दिल से पूछोगे, तो दर्द का सैलाब हूँ.
लोग कहते हैं हुई थी बारिश उस रोज़,
उन्हें क्या पता ग़म-ए-हिज़्र में रोया था कोई।
यूँ साए देख कर खुश होते हैं सब ग़ाफ़िल,
उन्हें क्या पता कल धूप में सोया था कोई।
कतरा-कतरा कर के मुस्कुराते हैं सभी,
उन्हें क्या पता चश़्म-ए-तर का रोया था कोई।
मंज़िल-ए-आखिर को चलते हैं अब राहिल,
उन्हें क्या पता इन राहों पर खोया था कोई।
किसी के इतने पास न जा
किसी के इतने पास न जा
के दूर जाना खौफ़ बन जाये
एक कदम पीछे देखने पर
सीधा रास्ता भी खाई नज़र आये
किसी को इतना अपना न बना
कि उसे खोने का डर लगा रहे
इसी डर के बीच एक दिन ऐसा न आये
तु पल पल खुद को ही खोने लगे
किसी के इतने सपने न देख
के काली रात भी रन्गीली लगे
आन्ख खुले तो बर्दाश्त न हो
जब सपना टूट टूट कर बिखरने लगे
किसी को इतना प्यार न कर
के बैठे बैठे आन्ख नम हो जाये
उसे गर मिले एक दर्द
इधर जिन्दगी के दो पल कम हो जाये
किसी के बारे मे इतना न सोच
कि सोच का मतलब ही वो बन जाये
भीड के बीच भी
लगे तन्हाई से जकडे गये
किसी को इतना याद न कर
कि जहा देखो वोही नज़र आये
राह देख देख कर कही ऐसा न हो
जिन्दगी पीछे छूट जाये
के दूर जाना खौफ़ बन जाये
एक कदम पीछे देखने पर
सीधा रास्ता भी खाई नज़र आये
किसी को इतना अपना न बना
कि उसे खोने का डर लगा रहे
इसी डर के बीच एक दिन ऐसा न आये
तु पल पल खुद को ही खोने लगे
किसी के इतने सपने न देख
के काली रात भी रन्गीली लगे
आन्ख खुले तो बर्दाश्त न हो
जब सपना टूट टूट कर बिखरने लगे
किसी को इतना प्यार न कर
के बैठे बैठे आन्ख नम हो जाये
उसे गर मिले एक दर्द
इधर जिन्दगी के दो पल कम हो जाये
किसी के बारे मे इतना न सोच
कि सोच का मतलब ही वो बन जाये
भीड के बीच भी
लगे तन्हाई से जकडे गये
किसी को इतना याद न कर
कि जहा देखो वोही नज़र आये
राह देख देख कर कही ऐसा न हो
जिन्दगी पीछे छूट जाये
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