Monday, October 1, 2007

२ अक्तूबर।


सत्य अहिंसा का जिसने दुनिया में अलख जगाया।
गुलामी की नींद से जिसने हिन्दोस्तान उठाया।
आओ स्मरण करें उनको उनकी जयन्ती पर,
जिनके कारण लाल किले पर अपना तिरंगा लहराया।।

कितना पावन दिन, है ये २ अक्तूबर।
हुए अवतरित देशभक्त एक, कहलाये जो लाल बहादुर।
नैया देश की जिसने कठिन समय में पार लगाई।
ऋण न चुका पायेंगे उनका, भारतवासी जन्म जन्मांतर।।

देश तो देशभक्तों से है, शहीद हो या हो नाबाद।
जिनकी शुभ करनी से, हम अब तक हैं आबाद।
करें प्रण मिलकर हमसब, कुरीतियों को मिटायेंगे।
हर तरह से सुदृड॰ भारत को भविष्य में ले जायेंगे।।

इक दीप जलता है कही


इस मतलबी संसार में।
सच झूठ की मंझधार में
मानव फंसा व्यापार में।
किन्तु
पथ उज्जवल है अन्धकार में
इक दीप जलता है कहीं।।
पैसे की कैसी ये लहर।
इंसानियत सडी दर बदर।
मकान हैं जो थे कभी घर
किन्तू
लौ हो गई अब प्रखर।
इक दीप जलता है कहीं।।