अभ्युदय
मन के कुछ भाव जो शब्दों का रूप लेकर लेखनी से होते हुये यथार्थ में उतर आते हैं।
Monday, October 1, 2007
इक दीप जलता है कही
ं
इस
मतलबी संसार में।
सच
झूठ
की
मंझधार
में
।
मानव फंसा व्यापार में।
किन्तु
पथ
उज्जवल
है
अन्धकार
में
।
इक
दीप
जलता
है
कहीं
।।
पैसे की कैसी ये लहर।
इंसानियत सडी दर बदर।
मकान
हैं
जो
थे
कभी
घर
।
किन्तू
लौ हो गई अब प्रखर।
इक दीप जलता है कहीं।।
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