Tuesday, July 24, 2007

दावानल

जीवन की अंधी दौङ के चलते,
एक अरसा हो गया मां के आंचल में सोये हुये।
रिश्तों में जंग लग गया है कुछ ऐसे,
कि मौसम बीत गये अपनों के संग मुस्कुराये हुये।
बस जीने के लिये जी रहे हैं अब तो,
वर्षों गुजर गये खुद से नजरें मिलाये हुये।
वक्त ठहर गया सा लगता है उनके बिन,
हम बेगाने न हो जायें उन्हें मन में बसाये हुये।
मुदत हो गयी कुछ गुनगुनाये हुये,
कि इक जमाना बीत गया, उन्हें याद आये हुये।
कि इक जमाना बीत गया, उन्हें याद आये हुये।।...

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