Tuesday, July 24, 2007

अकेला इक ख्वाब ..I Like it very Much (By Faiz)

इस अजनबी सी दुनिया में, अकेला इक ख्वाब हूँ.
सवालों से खफ़ा, चोट सा जवाब हूँ.

जो ना समझ सके, उनके लिये "कौन".
जो समझ चुके, उनके लिये किताब हूँ.

दुनिया कि नज़रों में, जाने क्युं चुभा सा.
सबसे नशीला और बदनाम शराब हूँ.

सर उठा के देखो, वो देख रहा है तुमको.
जिसको न देखा उसने, वो चमकता आफ़ताब हूँ.

आँखों से देखोगे, तो खुश मुझे पाओगे.
दिल से पूछोगे, तो दर्द का सैलाब हूँ.
लोग कहते हैं हुई थी बारिश उस रोज़,
उन्हें क्या पता ग़म-ए-हिज़्र में रोया था कोई।
यूँ साए देख कर खुश होते हैं सब ग़ाफ़िल,
उन्हें क्या पता कल धूप में सोया था कोई।

कतरा-कतरा कर के मुस्कुराते हैं सभी,
उन्हें क्या पता चश़्म-ए-तर का रोया था कोई।
मंज़िल-ए-आखिर को चलते हैं अब राहिल,
उन्हें क्या पता इन राहों पर खोया था कोई।

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