लाश
सोचा मैंने आसमान में,
देख के चील कोवे ज्यादा ॥
नाले में पडी लाश को,
खाने का था उनका इरादा ॥
वो लाश मुझे झकझोर गयी,
पर आने जाने वालों को "बोर" कर गयी॥
फैल रही थी वहां दुर्गन्ध,
आने जाने वाले लोग कर लेते,
झट से अपना नाक बंद ॥
कोई घूम के देखता ,
कोई मुंह फेर जाता ,
कोई न कुछ करना चाहता ॥
रुका न कोई वहां ,
रुके कुछ परिंदे ढीठ॥
वो भी न रुकते शायद ,
जो न भरना होता उन्हें अपना पेट ॥
ठीक ही कहा है शायद..
आदमी के स्वार्थ ने,
जमीर को उसके,
कर दिया है बंद ताले में ॥
और..
मानवता,
भाईचारे,
इमान की लाश,
गिरी हुई है नाले में॥-२
सोचा मैंने आसमान में,
देख के चील कोवे ज्यादा ॥
नाले में पडी लाश को,
खाने का था उनका इरादा ॥
वो लाश मुझे झकझोर गयी,
पर आने जाने वालों को "बोर" कर गयी॥
फैल रही थी वहां दुर्गन्ध,
आने जाने वाले लोग कर लेते,
झट से अपना नाक बंद ॥
कोई घूम के देखता ,
कोई मुंह फेर जाता ,
कोई न कुछ करना चाहता ॥
रुका न कोई वहां ,
रुके कुछ परिंदे ढीठ॥
वो भी न रुकते शायद ,
जो न भरना होता उन्हें अपना पेट ॥
ठीक ही कहा है शायद..
आदमी के स्वार्थ ने,
जमीर को उसके,
कर दिया है बंद ताले में ॥
और..
मानवता,
भाईचारे,
इमान की लाश,
गिरी हुई है नाले में॥-२