Saturday, October 25, 2008

लाश

सोचा मैंने आसमान में,
देख के चील कोवे ज्यादा
नाले
में पडी लाश को,
खाने का था उनका इरादा
वो लाश मुझे झकझोर गयी,
पर आने जाने वालों को "बोर" कर गयी
फैल
रही थी वहां दुर्गन्ध,
आने
जाने वाले लोग कर लेते,
झट से अपना नाक बंद
कोई
घूम के देखता ,
कोई
मुंह फेर जाता ,
कोई कुछ करना चाहता
रुका
कोई वहां ,
रुके
कुछ परिंदे ढीठ
वो
भी रुकते शायद ,
जो भरना होता उन्हें अपना पेट
ठीक ही कहा है शायद..

आदमी
के स्वार्थ ने,
जमीर
को उसके,
कर दिया है बंद ताले में
और..

मानवता,
भाईचारे
,
इमान की लाश,
गिरी हुई है नाले में॥-